Sunday, 21 June 2015

Swarga Bana Sakte Hain - Bhawartha aur Shabdartha

कविता—
परिचय और भावार्थ:
प्रस्तुत अंश दिनकर जी की प्रसिद्ध रचना कुरुक्षेत्र से लिया गया है। महाभारत युद्ध के उपरांत धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म पितामह के पास जाते हैं। वहाँ भीष्म पितामह उन्हें उपदेश देते हैं। यह भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को दिया गया अंतिम उपदेश है। 40 के दशक में लिखी गई इस कविता के माध्यम से कवि भारत देश की सामाजिक दशा, उसके विकास में उपस्थित बाधाओं और उसमें परिवर्तन कर उसे स्वर्ग समान बनाने की बात करते हैं।
 पितामह युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि यह भूमि किसी भी व्यक्ति-विशेष की खरीदी हुई दासी नहीं है। अर्थात उसकी निजी संपत्ति नहीं है। इस धरती पर रहने वाले हरेक मनुष्य का इस पर समान अधिकार है। सभी मनुष्यों को जीवन जीने हेतु प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है, किंतु कुछ शक्तिशाली लोग उनको उन सामान्य जनों तक पहुँचने से रोक रहे हैं। इस प्रकार वे मानवता के विकास में बाधक बने हुए हैं। जब तक सभी मनुष्यों में सुख का न्यायपूर्ण तरीके से समान वितरण नहीं होता है तब तक इस धरती पर शांति स्थापित नहीं हो सकती। तब तक संघर्ष चलता रहेगा। भीष्म पितामह के माध्यम से कवि कहते हैं कि मनुष्य निजी शंकाओं से ग्रस्त, स्वार्थी होकर भोग में लिप्त हो गया है, वह केवल अपने संचय में लगा हुआ है। कवि कहते हैं कि ईश्वर ने हमारी धरती पर हमारी आवश्कता से कहीं अधिक सुख बिखेर रखा है। सभी मनुष्य मिलकर उसका समान भाव से भोग कर सकते हैं। स्वार्थ को त्याग, सुख समृद्धि पर सबका अदिकार समझते हुए, उसे सभी को समान भाव से बाँटकर हम इस धरती को पल भार में स्वर्ग बना सकते हैं।

शब्दार्थ—


क्रीत- खरीदी हुई
जन्मना- जन्म से
समीरण- वायु
मुक्त – बाधारहित, आज़ाद, स्वतंत्र
शमित – शांत
विघ्न- बाधा
भव- भविष्य
सम- समान
कोलाहल- शोर
भोग- उपयोग में लाना, ऐश
संचय- जमा करना
विकीर्ण- बिखरे हुए
तुष्ट- संतुष्ट 

Swarga Bana Sakate Hain -- Abhyas Prshna

अभ्यास के लिए प्रश्न—
1.   सबको मुक्त प्रकाश चाहिए
सबको मुक्त समीरण
बाधा - रहित  विकास , मुक्त 
आशंकाओं से जीवन । 
लेकिन , विघ्न  अनेक अभी 
इस पथ में पड़े हुये हैं 
मानवता की राह रोक कर 
पर्वत  अड़े  हुये हैं ।

       क)      इस कविता का संदर्भ बताएँ।
       ख)     बाधा रहित विकाससे कवि का क्या आशय है?
       ग)      पर्वत शब्द से कवि का संकेत किस ओर है? कवि किन विघ्नों की बात कर रहा है?
       घ)      निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए—
              मुक्त, समीरण, विघ्न, बाधा-रहित

2.      जब तक मनुज - मनुज  का यह 
सुख भाग नहीं  सम  होगा 
शमित न होगा  कोलाहल 
संघर्ष  नहीं कम होगा । 
उसे भूल नर फंसा परस्पर 
की शंका में , भय में
निरत हुआ  केवल अपने ही 
हेतु भोग संचय में । 
    
     क)     कवि के अनुसार कब तक संघर्ष कम नहीं होगा
     ख)     सुख भागसे क्या तात्पर्य है? यह कैसे समान होगा? —अपने विचार प्रकट करें।
      ग)      उसे भूलशब्द का प्रयोग कवि ने किस संदर्भ में किया है?
      घ)      मनुष्य क्यों अपने सुख में लिप्त हो गया है? कविता के अनुसार बताएँ।

                                               

Swarga Bana Sakate Hain -- Kavita



Swarga Bana Sakate Hain-Kavi Parichay


Friday, 19 June 2015

साखी/कबीरदास


To Students

प्रिय विद्यार्थियों,

तकनीकी विकास मनुष्य के जीवन को सरल और सुविधायुक्त बनाने के लिए होता है। तीव्र गति के साथ नई-नई तकनीकों का आगमन हो रहा है। दुनिया तकनीकों का विकास कर रही है, प्रयोग कर रही है। हमें भी समय के साथ ताल मिलाकर चलना होगा अन्यथा हम भागती दुनिया की रफ्तार में बहुत पीछे छूट जाएँगे। प्रतियोगितात्मक समय हमें तनिक भी लापरवाही की इज़ाजत नहीं देता। प्राय: आप सभी नवीनतम गैजेट्स और मोबाइल्स से परिचित हैं। आप इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग भी कर रहे हैं। आप में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने आज तक नेटका उपयोग ना किया हो। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए। मैंने इस ब्लॉग को तैयार किया है। यह मेरे-आप के बीच के संवाद को निरंतरता प्रदान करेगा। इसके माध्यम से मैं आप सभी को आवश्यक पाठ्य-सामग्री सरलता पूर्वक प्रदान कर पाऊँगा। और आप अपने प्रश्नों को मुझ तक पहुँचा पाएँगे। तब भी जब कक्षा की सुविधा उपलब्ध ना हो।

ऋतेश कुमार पाण्डेय